Natural & Synthetic Rubber
आइयें जानें कैसे बनता है रबर ?
रबर पेड़ों से मिलता हैं। कुछ पेड़ों, झाड़ियों से निकलने वाले लैटेक्स से रबर प्राप्त होता है। लैटेक्स एक तरल पदार्थ होता है जिसके सूखने पर प्राकृतिक रबर बनता है। वैसे तो रबर के पेड़ों की 400 से भी ज़्यादा किस्में मौजूद है लेकिन सबसे ज़्यादा रबर ‘हैविया ब्राजिलिएन्सिस’ से मिलता है।
पेड़ लगाने के 5 साल बाद, उस पेड़ से लैटेक्स निकलना शुरू हो जाता है और लगभग 40 सालों तक निकलता रहता है। एक एकड़ में करीब 150 पेड़ लगाए जाते हैं जिनसे 150 से 500 पाउंड तक रबर मिल जाता है। इसके अलावा ‘फाइकस इलैस्टिका’ नामक पेड़ से भी रबर प्राप्त होता है।
पेड़ से रबर निकालने का तरीका- पेड़ के तने को छेदकर, उसमें से निकलने वाले लैटेक्स को इकट्ठा किया जाता है। ये लैटेक्स पानी से हल्का होता है और इसमें रबर के अलावा रेज़िन, शर्करा, प्रोटीन, खनिज लवण और एन्जाइम्स पाए जाते हैं।
इस लैटेक्स का केमिकल्स की सहायता से परीक्षण किया जाता है ताकि बनने वाला रबर बढ़िया किस्म का हो। अब इस लैटेक्स का स्कंदन होने दिया जाता है जिससे लैटेक्स में मौजूद पानी सूख जाता है और रबर शेष रह जाता है।
इस शुद्ध रबर में ना कोई रंग होता है और ना ही कोई गंध होती है। रबर इतना लचीला होता है कि इसे खींचे जाने पर ये आठ गुना तक लम्बा खिंच जाता है और इसी गुण के कारण रबर से गुब्बारे, गेंदें और जूते जैसी चीज़ें बड़ी आसानी से बन जाती हैं। इसके अलावा बिजली का कुचालक होने के कारण इसका इस्तेमाल बिजली के उपकरणों में भी होता है।
1. Natural Rubber -
प्राकृतिक रबड़
प्राकृतिक रबड़ पेड़ों और लताओं के रस या लेटेक्स से बनता है। सबसे अधिक रबड़ हैविया ब्राजीलिएन्सिस से प्राप्त होता है। यह अमरीका के अमेज़न नदी के जंगलों में उगता था और अब भारत के त्रावणकोर, कोचीन, मैसूर, मलाबार, कुर्ग, सलेम और श्रीलंका में उगाया जाता है। पाँच वर्ष के हो जाने पर पेड़ से लेटेक्स निकलना शुरू होता है और लगभग 40 वर्षों तक निकलता रहता है। एक पेड़ से प्रति वर्ष प्राय: 6 पाउंड तक रबड़ प्राप्त होता है।
पेड़ों के धड़ को छेदने या काटने से लेटेक्स निकलता है जिसमें शुष्क रबड़ की मात्रा लगभग 32 प्रतिशत रहती है। रबड़ क्षीर पानी से हल्का हाता है। लेटेक्स में रबड़ के अतिरिक्त रेज़िन, शर्करा, प्रोटीन, खनिज लवण और एंज़ाइम रहते हैं। पेड़ से निकलने के बाद लेटेक्स का परिरक्षण आवश्यक है अन्यथा लेटेक्स का स्कंदन (Coagulation) होने से जो रबड़ प्राप्त होता है वह उत्तम कोटि का नहीं होता है।
लेटेक्स के परिरक्षण के लिए 0.5 से 1.0 प्रतिशत अमोनिया, फॉर्मेलिन तथा सोडियम, या पोटैशियम हाइड्राक्साइड का प्रयोग होता है। इनमें अमोनिया सर्वश्रेष्ठ होता है। लेटेक्स कोलॉयड सा व्यवहार करता है और इसका ph मान 7 होता है और अमोनिया से यह 8 से 11 हो जाता है।
लेटेक्स से रबड़ की प्राप्ति के लिए का लेटेक्स का स्कंदन होता है। स्कंदन की कई पुरानी रीतियाँ है जैसे- रबड़ क्षीर को मिट्टी के गड्ढे में गाड़ देना, पेड़ के धड़ पर ही रबड़ क्षीर को स्कंदन के लिए छोड़ देना, धुएँ से लेटेक्स का स्कंदन करना आदि लेकिन आधुनिक रीति में स्कंदन के लिए रसायनिक अम्ल, अम्लीय लवण, सामान्य लवण, ऐल्कोहॉल इत्यादि का प्रयोग होता है । ऐसीटिक अम्ल, फॉर्मिक अम्ल और हाइड्रोफ्लोरिक अम्ल स्कंदन के लिए उत्तम होते हैं। वर्तमान में विद्युत् प्रवाह द्वारा भी स्कंदन होने लगा है |
Vulcanization -
(वल्कनीकरण)
प्राकृतिक रबड़ अपनी प्रकृति में थर्मोप्लास्टिक है अतः यह गर्मियों में मुलायम व चिपचिपी हो जाती है और सर्दियों में कठोर हो जाती है | इसी समस्या के समाधान के लिए प्राकृतिक रबड़ के सैम्पल को गर्म स्टोव पर रखकर उसमें सल्फर व लिथार्ज ( लेड ऑक्साइड,PbO ) मिलाने से रबड़ जैसे ही पदार्थ का निर्माण होता है जिसकी प्रकृति थर्मोस्टेट या थर्मोस्टेटिंग पॉलीमर जैसी होती है | इस प्रक्रिया को वल्कनीकारण (Vulcanization) कहते हैं|
2. Synthetic Rubber -
कृत्रिम/ संश्लेषित रबड़
इनके निर्माण में अनेक असंतृप्त हाइड्रोकार्बन आइसोप्रीन, व्यूटाडीन, क्लोरोप्रीन, पिपरिलीन, साइक्लोपेंटाडीन, स्टाइरिन, तथा अन्य असंतृप्त हाइड्रोकार्बन आइसोप्रीन, व्यूटाडीन, क्लोरोप्रीन, पिपरिलीन, साइक्लोपेंटाडीन, स्टाइरिन, तथा अन्य असंतृप्त यौगिक मेथाक्रिलिक अम्ल, मेथाइल मेथाक्रिलेट विशेष उल्लेखनीय हैं। ये रसायन अनेक स्रोतों से प्राप्त होते हैं।
कुछ रसायनक पेट्रोलियम से भी प्राप्त होते हैं। रबड़ बनाने में इनका बहुलकीकरण होता है। कृत्रिम रबड़ का भी प्राकृतिक रबड़ सा ही वल्कनीकरण होता है। व्यूटाडीन से प्राप्त कृत्रिम रबड़ को व्यूना-एस, परव्यूनान और परव्यूनानएक्स्ट्रा कहा जाता है । व्यूना-एस का बना टायर पर्याप्त टिकाऊ होता है।
Production of Rubber -
रबड़ उत्पादन
केरल अकेले 85 प्रतिशत से अधिक रबड़ का उत्पादन करता है। तमिलनाडु, कर्नाटक और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह अन्य प्रमुख रबड़ उत्पादक क्षेत्र हैं। केरल में कोट्टायम, क्विलोन, त्रावणकोर, एर्णाकुलम, कोझीकोड, कोच्चि और मालाबार प्रमुख रबड़ उत्पादक क्षेत्र हैं। तमिलनाडु में नीलगिरि, कन्याकुमारी, कोयम्बटूर, सलेम और मदुरई प्रमुख रबड़ उत्पादक जिले हैं। चिकमंगलूर और कुर्ग जिले कर्नाटक के प्रमुख रबड़ उत्पादक क्षेत्र हैं। इनके अतिरिक्त असम, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, मेघालय, मिजोरम, मणिपुर, नागालैण्ड, ओडीशा, गोवा और महाराष्ट्र भी रबड़ का उत्पादन करते हैं।
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