सूर्य गैस का एक बहुत विशाल गोला है परंतु यह तथ्य या अनुमान बिल्कुल गलत है अगर सूर्य एक गैस का गोला है तो उसमें उपस्थित सारी गैसें उड़ क्यों नहीं जाती।
मैं उत्तर शुरू करूं उससे पहले सूर्य के बारे में कुछ तथ्य समझ लेते हैं।
सूर्य का आकार पृथ्वी सूर्य का आकार पृथ्वी के आकार से लगभग 12,000 गुना ज्यादा है जबकि वजन के मामले में सूर्य पृथ्वी से लगभग 3,33,000 गुना भारी है।सौरमंडल का लगभग 99% से ज्यादा भाग केवल सूर्य का है।
एक सिर्फ एक अनुमान के मुताबिक सूर्य के केंद्र का तापमान लगभग 17 मिलीयन डिग्री सेंटीग्रेड है। एक मिलियन बराबर 1000000 होता है। मतलब सूर्य के केंद्र का तापमान एक करोड़ सत्तर लाख डिग्री सेंटीग्रेड है।
इतने अधिक तापमान पर किसी भी चीज का यहां तक कि ऑक्सीजन हाइड्रोजन आदि अत्यंत छोटे कणो का अपने स्वरूप में रहना असंभव है। यहां तक की वहां गैस के कण तो छोड़िए परमाणु भी अपने स्वरुप में नहीं रह सकता है।
परमाणु अणु और अन्य पदार्थ वहां प्लाज्मा की अवस्था में रहते हैं यह अवस्था केंद्र में ज्यादा पाई जाती है। अमेरिकी संस्थान नासा की खोजों के मुताबिक प्लाज्मा में खुद की गुरुत्वाकर्षण शक्ति होती है। यह आपस में एक दूसरे को आकर्षित करता है तथापि किसी भी अन्य वस्तु हेतु भी गुरुत्वाकर्षण के गुण को प्रदर्शित करता है।
यह खोज का विषय है कि इतने उच्च तापमान पर भी गुरुत्वाकर्षण काम कैसे करता है।
यह तो हुई गुरुत्वाकर्षण की बात अब आप के प्रश्न के मुताबिक सूर्य रूपी गैस के गोले में से सारी गैसे उड़ क्यों नहीं रही??
तो उत्तर यह है कि प्लाज्मा सारी गैसों को खींच कर रखता है अपने गुरुत्वाकर्षण के कारण क्योंकि उसका घनत्व सूर्य में बहुत ज्यादा है।नाभिकीय संलयन से होने वाले अति उच्च तापमान तथा दबाव अर्थात विस्फोट को भी यही प्लाज्मा नियंत्रित करता है।
सूर्य की सतह कभी भी स्थिर नहीं रहती क्योंकि यह गैस की है। यह हमेशा फैलती तथा सिकुड़ती रहती है। जैसे ही नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया होती है, वैसे ही इसकी परत थोड़ी बाहर निकलती है, परंतु उसी वक्त प्लाज्मा द्वारा अंदर खींच ली जाती है।
इस कारण उसका आकार लगभग स्थिर रहता है जैसा कि मैंने पहले बताया है सूर्य का आकार पृथ्वी के आकार से लगभग 12000 गुना है और दूरी करोड़ों मील है तो पृथ्वी से देखने पर हमें इसके आकार के बारे में ज्यादा पता नहीं लगता और हमें लगता है कि वह लगभग स्थिर है।
विगत वर्षों में आए कुछ सौर तूफान इसीलिए आए थे क्योंकि नाभिकीय संलयनों की संख्या आश्चर्यजनक रूप से बढ़ गई थी इसी कारण उत्पन्न होने वाली ऊर्जा की मात्रा में भी आश्चर्यजनक रूप से बढ़ोतरी हुई। फल स्वरूप तेजी से विकिरण सौर मंडल में बह चलें। इसी को सौर तूफान की संज्ञा दी गई थी।
अब आप कहेंगे कि क्या सबूत है प्लाज्मा का??
चलिए आपको वो भी बता देता हूँ:- जब भी सूर्य की किसी विशेष तरीके से फोटो ली गई है चाहे वह इंफ्रारेड इमेजिंग तकनीक हो या अल्ट्रावायलेट या कोई अन्य फिल्टर हमेशा सूर्य की सतह पर कुछ ना कुछ स्पॉट पाय गए। जिन्हें अध्ययन करके यह पाया गया वह सब चुंबकीय क्षेत्र की निशानी हैं।यह तभी संभव है कि सूर्य के सतह के भीतर कुछ ऐसा हो जो चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करता हो।
इसके अलावा सूर्य से निकलने वाली लगभग 450 किलोमीटर प्रति घंटे की चुंबकीय हवाएं भी इस तथ्य की पुख्ता गवाह है।
अब आप कहेंगे कि हमें यह महसूस क्यों नहीं होता?? इसका कारण है पृथ्वी का स्वयं का चुंबकत्व तथा हमारा वायुमंडल तथा विशिष्ट गैसें जोकि आयन मंडल में उपस्थित हैं।
ओजोन परत पराबैगनी किरणों को रोकती है तथा अन्य गैसें इन हवाओं को रोक लेती हैं। सूर्य से लगभग हर प्रकार के रेडिएशन निकलते हैं इन सभी रेडिएशनों को हमारा वायुमंडल रोक लेता है ।जो यात्री अंतरिक्ष में जाते हैं उनके लिए वहां के रेडिएशन से रक्षा के लिए ही मद्देनजर रखते हुए सूट डिजाइन किए जाते हैं।
संक्षेप में इतना कहा जा सकता है सूर्य एक गैस का बहुत बड़ा गोला है, जिसके अंदर करोड़ों डिग्री सेंटीग्रेड का तापमान है। इतने उच्च तापमान पर पदार्थ अपनी एक दुर्लभ अवस्था प्लाज्मा में रहता है। जोकि सूर्य के गुरुत्वाकर्षण का प्रमुख स्त्रोत है यही प्लाज्मा हाइड्रोजन तथा हीलियम के बादलों को बांध कर रखता है ।
यही हाइड्रोजन हीलियम और अन्य छोटे तत्व नाभिकीय संलयन कर ऊर्जा की तथा प्रकाश की अत्यंत विशाल मात्रा उत्पन्न करते हैं। जिससे हमें पृथ्वी पर करोड़ों मील दूर भी यह महसूस होती है।
अब सूर्य की बात उठी है तो मैं पूरी करता हूं कि क्या होगा अगर सारी हाइड्रोजन हिलियम गैस खत्म हो जाए क्योंकि कोई ना कोई कमेंट बॉक्स में पूछेगा ही। तो सुनिए जब तक सूर्य की हाइड्रोजन और हीलियम गैस खत्म होगी तो तब तक उस स्थिति में सारा तत्व जो भी उस में उपस्थित है वह आपस में फ्यूज हो कर अन्य भारी तत्व बना चुका होगा।
कुछ थ्योरीयों के मुताबिक जैसे ही सूर्य में हाइड्रोजन और हीलियम आदि तत्व लोहे के परमाणु क्रमांक तक पहुंच जाएंगे, उसी समय उसका अंत शुरू हो जाएगा।
उस स्थिति में क्या होगा की सूर्य के कोर का गुरुत्वाकर्षण लोहे और अन्य भारी तत्वों के कारण तेजी से बढ़ेगा, क्योंकि हाइड्रोजन व हिलियम खत्म होने ही वाली है अर्थात कम ही है तो इस गुरुत्वाकर्षण को संतुलित करने के लिए जो नाभिकीय संलयन हो रहा था वह कम हो चुका होगा।
जिससे सूर्य की बाहरी सतह अंदर की ओर ध्वस्त होगी। और एक प्रचंड विस्फोट से सारा पदार्थ बाहर की और फिका जाएगा। (चिंता मत करिए उस समय तक मनुष्य अपने कार्यों से पृथ्वी को खत्म कर चुका होगा)।
विस्फोट के बाद उत्पन्न हुई दीप्ति या आभा से कई सालों तक सारा क्षेत्र जगमगाता रहेगा।
उसके बाद क्या होगा उस की भी लंबी कहानी है, पर वो फिर कभी।
अतिरिक्त जानकारी—एक नई खोज के अनुसार पृथ्वी के कोर का तापमान सूर्य की सबसे बाहरी सतह यानी कोरोना से भी ज्यादा है।
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