मध्यप्रदेश की मिट्टियाँ
§ मृदा
(Soil) लेटिन भाषा की SOLUM शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ फर्श या ऊपरी सतह से होता
है अर्थात मृदा,पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत है।
§ भू-पृष्ठ की सबसे ऊपरी परत जो पौधे की उगने एवं बढ़ने के लिए जीवन एवं खनिज प्रदान करती है मृदा या मिट्टी कहलाती है अर्थात मृदा जीवांश से युक्त ढीला पदार्थ है,जो पौधों को बढ़ने के लिए नमी तथा आधार प्रदान करता है।
§ डॉ हेमंत बेनेट के अनुसार - भूमि के तल पर पाई जाने वाली असंगठित पदार्थों की वह ऊपरी परत जो मूल चट्टानों तथा वनस्पति अंश के योग से निर्मित हुई है मिट्टी है।
§ मृदा
विज्ञान का फसल उत्पादन की दृष्टि से जब अध्ययन किया जाता है तब मृदा विज्ञान की यह
शाखा Edaphology कहलाती है
§ वनस्पति और कृषि के रूप को निर्धारित करने वाले कारकों में मिट्टी अत्यधिक महत्वपूर्ण है किसी भी प्रदेश में घांस अथवा वन किस प्रकार के पाए जाते हैं यह मिट्टी की प्रकृति पर निर्भर होता है।
§ कृषि भूमि उपयोग फसलों का प्रादेशिक वितरण , उत्पादन की मात्रा , उत्तम एवं वनस्पति की भिन्नता वहां पाई जाने वाली मिट्टियों की प्रकृति से निर्धारित होती है।

v भारतीय भूमि एवं मृदा सर्वेक्षण विभाग ने मध्यप्रदेश की मिट्टियां को पांच भागों में वर्गीकृत किया है।
काली मिट्टी (Black Soil)
· अन्य नाम – कन्हर ,ह्यूमस ,काली कपास मृदा ,करेल , चेरनोजम।
· मुख्य तत्व – लोहे व चूने की अधिक
काली मिट्टी का प्रदेश मुख्य दक्कन ट्रैप है जहां बेसाल्ट नामक आग्नेय
चट्टान बहुत मोटी परतों में मिलती है यह गहरे रंग की दोमट मिट्टी है जिसके दो मुख्य
घटक चीका और बालू हैं रासायनिक संगठन की दृष्टि से इस मिट्टी में लोहे और चुने की अधिकता
होती है जबकि फास्फेट नाइट्रोजन व जैव पदार्थ की कमी होती है लोहा की अधिकता के कारण
इसका रंग काला होता है। पानी पड़ने पर यह मिट्टी चिपकती है एवं सूखने पर बड़ी-बड़ी दरारें पड़ जाती है जिससे इसमे वायु संचरण तथा जल निकास की समस्या नहीं होती है।
मध्यप्रदेश में यह मिट्टी सतपुड़ा के कुछ भाग, नर्मदा घाटी एवं मालवा के पठारी भागों में मिलती है,मंदसौर, रतलाम, झाबुआ,धार, खंडवा, खरगोन, इंदौर, देवास, सीहोर, उज्जैन, शाजापुर, राजगढ़,भोपाल, रायसेन, विदिशा,सागर, दमोह, जबलपुर ,नरसिंहपुर, होशंगाबाद, बेतूल,छिंदवाड़ा, सिवनी, गुना,शिवपुरी,सिंधी जिलों का भू-भाग दक्कन के पठार का उत्तरी पश्चिमी भाग हैं।
काली मिट्टी को तीन भागों में विभाजित किया जाता है।
- गहरी काली मिट्टी
- साधारण गहरी काली मिट्टी
- छिछली काली मिट्टी
1. गहरी काली मिट्टी (Deep Black Soil) - नर्मदा सोन घाटी में अधिकांशतः तथा मालवा का क्षेत्र तथा सतपुड़ा का मुख्य भाग इसके अंतर्गत आता है। यह राज्य की 3.5% भूमि अर्थात 35 लाख एकड़ क्षेत्र व्यक्ति है 20 से 60% चिकनी मिट्टी की मात्रा वाली स्मृति को गहराई 1 से 2 मीटर तक है यह मिट्टी गेहूं,तिलहन,चने तरह ज्वार की खेती के लिए बहुत उपयोगी है।
2. साधारण काली मिट्टी (Simple Black Soil)
- मालवा के पठार का इस मिट्टी का मुख्य केंद्र है मालवा का पठार एवं निर्माण प्रदेश के लगभग 400 लाख एकड़ अथवा राज्य का 37% भाग इस वर्ग की मिट्टी के अंतर्गत आता है। इस मिट्टी की गहराई 15 सेंटीमीटर से 1 मीटर तक है और मिट्टी का रंग भी बुरा अथवा हल्का काला है ! इस मिट्टी में सिंचाई की आवश्यकता अधिक नहीं होती।
3. छिछली काली मिट्टी (Shallow Black Soil) - सतपुड़ा श्रेणी का अधिकतम भाग छिछली मिट्टी से आच्छादित है इस भाग में छिंदवाड़ा,सिवनी तथा बैतूल जिले आते हैं,इसका क्षेत्रफल लगभग 7500000 एकड़ अथवा राज्य का 7.1% है यह चिकनी दोमट मिट्टी है, जो गेहूं चावल कपास आदि के लिए उपयुक्त है। काली मिट्टी का प्रदेश कृषि प्रदेश कहलाता है,जहां रबी और खरीफ की ऐसी फसलें होती हैं,जिनमें सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती हैं।
काली मिट्टी
लैटेराइट मिट्टी (Laterite Soil)
·
स्थानीय
नाम - भाटा अर्थात पत्थर
·
मुख्य
तत्व - एल्युमीनियम,पोटाश तथा आयरन
·
PH मान - 7 से अधिक
लैटेराइट मृदा एक चट्टानी मृदा है इसलिए इसमें चट्टानों की कण अधिक पाए जाते हैं इस मृदा को लाल बलुई मृदा भी कहते हैं इसका निर्माण मानसूनी जलवायु की आर्द्रता एवं शुष्कता में क्रमिक परिवर्तन के परिणाम स्वरूप व विशिष्ट परिस्थितियों में होता है इस मिट्टी में ह्यूमस की मात्रा कम पाई जाती है क्योंकि इन क्षेत्रों में तापमान और वर्षा की मात्रा अधिक होने के कारण क्षारीय तत्व व ह्यूमस जल के साथ घुलकर नीचे की परतों में चले जाते हैं। यह मिट्टी राज्य है दक्षिण पूर्वी जिला छिंदवाड़ा और बालाघाट आदि के लगभग 70% भाग पर पाई जाती है। इसमें रेत,कंकड़,पत्थर बहुतायत मिलते हैं यह भवन निर्माण के लिए अति उत्तम मानी जाती हैं। इस मिट्टी में ज्वार,बाजरा,कोदो,कुटकी जैसे मोटे अनाज का उत्पादन किया जाता है।
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लैटेराइट मृदा |
लाल और पीली मिट्टी (Red & Yellow Soil)
·
स्थानीय नाम - डोरसा
·
मुख्य तत्व - चूना
·
PH मान - 5.5 से 8.5
मध्यप्रदेश का संपूर्ण पूर्वी भाग,बघेलखंड जिसमें
मंडला बालाघाट शहडोल आदि जिले आते हैं में लाल मिट्टी तथा पीली मिट्टी पाई जाती है।
लाल और पीली मिट्टी में पीला रंग फेरिक ऑक्साइड के जलायोजन के कारण तथा लाल रंग लोहे
की ऑक्सीकरण के कारण होता है। इस मिट्टी का निर्माण मध्यप्रदेश में पाई जाने वाली विंध्य
क्रम की चट्टानों ग्रेनाइट व नीस की चट्टानों के अपरदन से हुआ है। यह मिट्टी प्रदेश
की संपूर्ण मृदा का 37% भाग में है। इसमें नाइट्रोजन फास्फोरस और ह्यूमस की अनुपस्थिति
के कारण अपेक्षाकृत उर्वरता कम है।प्रदेश में इस मिट्टी की प्रमुख फसल चावल है।
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लाल और पीली मिट्टी |
जलोढ़ मिट्टी(Alluvial Soil)
- स्थानीय नाम - काँप, दोमट मिट्टी
- मुख्य तत्व - बालू
- PH मान - 7
इसका निर्माण हिमालय तथा नदियों द्वारा बहा कर लाए गए अवसादो से हुआ है, इसमें नाइट्रोजन एवं समस्त की मात्रा कम होती है जबकि चूना फास्फोरिक एसिड जैव पदार्थों एवं पोटाश की प्रचुरता पाई जाती है इस मिट्टी की प्रकृति उदासीन होती है क्योंकि इस का पीएच मान सात होता है मध्य प्रदेश में इस मृदा का निर्माण चंबल एवं उसकी सहायक नदियों द्वारा बहा कर लाए गए थे कछारों या अवसादो से हुआ है इसलिए इसे कछारी मिट्टी भी कहते हैं उर्वरता अधिक होने के कारण यह मिट्टी खाद्यान्न उत्पादन की दृष्टि से सबसे उपयोगी है जलोढ़ मिट्टी में बालू सिल्ट और क्ले का अनुपात 50:19.6:29.4 होता है। जलोढ़ मिट्टी राज्य के उत्तर पश्चिमी भाग में स्थित भिंड मुरैना श्योपुर तथा ग्वालियर जिलों में पाई जाती है जलोढ़ मिट्टी वाला क्षेत्र राज्य का मुख्य सरसों क्षेत्र है इस मिट्टी में सरसों के अलावा गेहूं,ज्वार,चना,जौं आदि की फसल उगाई जाती है। यह मिट्टी वर्तमान में मृदा अपरदन की समस्या से ग्रसित है।
जलोढ़ मिट्टी
मिश्रित मिट्टी(Mixed soil)
- विंध्य प्रदेश एवं मध्य प्रदेश के अनेक क्षेत्रों में लाल पीली एवं काली मिट्टी मिश्रित रूप में पाई जाती है यह मिट्टी फास्फेट नाइट्रोजन एवं कार्बनिक पदार्थों की कमी वाली कम उपजाऊ होती है इसलिए इस प्रकार की मिट्टी में मुख्यता मोटे अनाज ज्वार मक्का आदि उत्पादित किए जाते हैं।
मृदा अपरदन ( Soil Erosion ) - मृदा अपरदन का अर्थ है बाहय कारको जैसे वायु जल या गुरुत्वीय विस्थापन द्वारा मृदा कणो का अपने मूल स्थान से पृथक होकर बह जाना या उड़ कर दूसरे स्थान में पहुंच जाना।
v मृदा अपरदन को रेंगती हुई मृत्यु (Creeping Death) भी कहा जाता है।
v मध्य प्रदेश में मृदा अपरदन कृषि के लिए एक जटिल समस्या है क्योंकि इसके कारण मिट्टी की सतह कट कर बह जाती है ! जिसके कारण उस क्षेत्र की उर्वरता और उत्पादन में कमी आती है।
v मानसूनी वर्षा मृदा अपरदन का एक मुख्य कारण है यहाँ वर्षा उस समय होती है जब ग्रीष्म ऋतु के बाद मिट्टी सुख कर भुर भुरी हो जाती है एवं जल के साथ साथ बह जाती है साथ ही यह वर्षा तेज वह चारों के रूप में होती है और तेजी से बहता हुआ जल भूमि का कटाव करता है।
v ग्रीष्म ऋतु में वनस्पति की कमी होने के कारण बहता हुआ वर्षा जल अधिक शक्ति से भूमि का कटाव करने में समर्थ होता है विभिन्न क्षेत्रों में ढाल की तीव्रता के साथ जल प्रवाह की गति भी बढ़ती जाती है जिससे उसकी क्षमता भी कई गुना बढ़ जाती है।
v मध्यप्रदेश में अधिकतर भूमि पठारी एवं पहाड़ी है 50 ढाल पर्याप्त है अतः मानसूनी वर्षा तथा भूमि के गलत उपयोग के कारण मृदा अपरदन एक जटिल समस्या बन गई है।
v चंबल की घाटी का भूमि क्षरण मध्य प्रदेश की ही नही इस देश की गंभीर समस्या है मृदा मध्यप्रदेश में चंबल नदी का अपवाह क्षेत्र अर्थात भिंड,श्योपुर, मुरैना,ग्वालियर आदि क्षेत्र मृदा अपरदन से सर्वाधिक प्रभावित है इन क्षेत्रों में अवनालिका अपरदन(Gully Erosion) के कारण खोह खड्डों या उत्खात भूमि का निर्माण हो गया है।
v मृदा अपरदन को रेंगती हुई मृत्यु (Creeping Death) भी कहा जाता है।
v मध्य प्रदेश में मृदा अपरदन कृषि के लिए एक जटिल समस्या है क्योंकि इसके कारण मिट्टी की सतह कट कर बह जाती है ! जिसके कारण उस क्षेत्र की उर्वरता और उत्पादन में कमी आती है।
v मानसूनी वर्षा मृदा अपरदन का एक मुख्य कारण है यहाँ वर्षा उस समय होती है जब ग्रीष्म ऋतु के बाद मिट्टी सुख कर भुर भुरी हो जाती है एवं जल के साथ साथ बह जाती है साथ ही यह वर्षा तेज वह चारों के रूप में होती है और तेजी से बहता हुआ जल भूमि का कटाव करता है।
v ग्रीष्म ऋतु में वनस्पति की कमी होने के कारण बहता हुआ वर्षा जल अधिक शक्ति से भूमि का कटाव करने में समर्थ होता है विभिन्न क्षेत्रों में ढाल की तीव्रता के साथ जल प्रवाह की गति भी बढ़ती जाती है जिससे उसकी क्षमता भी कई गुना बढ़ जाती है।
v मध्यप्रदेश में अधिकतर भूमि पठारी एवं पहाड़ी है 50 ढाल पर्याप्त है अतः मानसूनी वर्षा तथा भूमि के गलत उपयोग के कारण मृदा अपरदन एक जटिल समस्या बन गई है।
v चंबल की घाटी का भूमि क्षरण मध्य प्रदेश की ही नही इस देश की गंभीर समस्या है मृदा मध्यप्रदेश में चंबल नदी का अपवाह क्षेत्र अर्थात भिंड,श्योपुर, मुरैना,ग्वालियर आदि क्षेत्र मृदा अपरदन से सर्वाधिक प्रभावित है इन क्षेत्रों में अवनालिका अपरदन(Gully Erosion) के कारण खोह खड्डों या उत्खात भूमि का निर्माण हो गया है।
1.
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चम्बल के खड्डे |
2.
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वायु द्वारा अपरदन |
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वायु द्वारा अपरदन |
3.
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जल (अवनालिका) अपरदन |
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जल (अवनालिका) अपरदन |
मृदा अपरदन को रोकने के उपाय –
- भौतिक एवं यांत्रिक विधि - मेड बनाना, खेत का समतलीकरण करना,सीढ़ीदार खेती करना,वैदिकाएं बनाना तथा स्टॉप डैम बनाना।
- कृषि से संबंधित विधि - समोच्च खेती करना,मृदा आरक्षक फसलें उगाना, उचित फसल चक्र अपनाना जीवांश खादों के उपयोग करना घासों की पट्टियां तैयार करना।
मृदा विकार –
क्षारीय मृदा (Solonetz) -
- वे मृदायें जिनमें मृदा संकीर्ण या मृदा में (Na+) सोडियम आयन अधिशोषित हो जाते हैं अर्थात वह मृदायें जो सोडियम के धन आयनों से संतृप्त होती है क्षारीय मृदा कहलाती है अर्थात इन मृदाओं का निर्माण सोडियम आयनो की अधिकता के ही कारण होता है।
- मृदाओं का PH मान 8.5 से अधिक होता है।
लवणीय मृदाये (Solenchalk) -
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ऐसी मृदा है जिनमें विलेय अथवा विनिमय योग्य सोडियम के लवणों की अधिकता होती है लवणीय मृदाएं कहलाती हैं।
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इन मृदाओं में सोडियम के क्लोराइड तथा सल्फेट लवणों की अधिकता होती है।
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इन मृदाओं का PH 7 से 8.5 तक होता है।
अम्लीय मृदाएं (Acidic Soil) -
- अम्लीय मृदाएं को हाइड्रोजन मृदाएं तथा खट्टी मृदाएं भी कहा जाता है यह मृदाएं उन स्थानों या उन क्षेत्रों में पाई जाती है जहां की औसत वार्षिक वर्षा 40 इंच होती है।
- जब मृदा कणों के चारों स्वतंत्र विनिमयशील हाइड्रोजन आयन का सांद्रण बढ़ जाता है तब मृदाएं अम्लीय हो जाती हैं अम्लीय मृदाएं मुख्यतः अत्यधिक वर्षा,पैतृक पदार्थों की अम्लीय प्रकृति, अम्लीय प्रकृति के उर्वरकों का लगातार उपयोग आदि कारणों से बनती हैं।
- इन मृदाओं का PH सदैव 7 से कम होता है।
लवणीय और क्षारीय मृदाओं का सुधार -
- मिट्टी की लवणीयता और क्षारीयता विकारों का अध्ययन साथ साथ किया जाता है क्योंकि इन मृदाओं में अधिक समानता पाई जाती है।
- लवणीय तथा क्षारीय मृदाओं के सुधार के लिए एवं उन्हें कृषि योग्य बनाने के लिए जिप्सम एक प्रभावी और सर्वाधिक मात्रा में उपयोगी पदार्थ है।
अम्लीय मृदाओं का सुधार -
- अम्लीय मृदाओं का सुधार के लिए उपयोग में लाए जाने वाले रसायनों में CaO, Ca(OH)2, MgCO3 आदि चूना पदार्थों का उपयोग किया जाता है।
- चूना पदार्थों में मुख्यतः Ca++ तथा Mg++ आयन होते हैं यह आयन मृदा के अंदर से हाइड्रोजन एवं एलुमिनियम आयनो को धीरे धीरे विस्थापित कर देते हैं और इस प्रकार अम्लीय मृदा का सुधार हो जाता है।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य -
1. राष्ट्रीय मृदा विज्ञान संस्थान भोपाल मध्य प्रदेश स्थित है।2. मृदाओं के वैज्ञानिक वर्गीकरण का सर्वप्रथम प्रयास रूस के डाकूचैब ने किया था।
3. मृदाओं का आधुनिक तथा नवीन वर्गीकरण सन 1975 में दिया गया।
4. मृदा नमूना ऑगर(Auger) नामक यंत्र से लिया जाता है तथा इसका भार 500 ग्राम होता है।
5. खेती योग्य सामान्य अदाओं का C:N अनुपात 10-12:1 होता है।
6. फसल उत्पादन की दृष्टि से गोलाकार मृदा संरचना सर्वोत्तम मानी जाती है क्योंकि इस प्रकार की मृदा संरचना जीवांश युक्त मृदाओं में अधिक पाई जाते हैं।
7. सबसे नवीन नई अथवा विकसित मृदाएं एल्युबियल मृदाएं मानी जाती हैं
8. मृदा की ऊर्ध्वाधर खड़ी काट मृदा परिच्छेदिका(Soil Profile) कहलाती है यह विभिन्न संस्तरो(A,B,C) से मिलकर बनी होती है।
9. मृदा अपरदन तथा जलाक्रांत दोनों समस्या मध्य भारत के पठार में है।
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