भारत की राष्ट्र भाषा हिंदी के दीवाने ना सिर्फ भारत बल्कि विदेशों में भी
हैं। प्राचीन काल से ही हिंदी भाषा में अलग-अलग धर्मों और उसके अनुयायियों
के लिए बहुत सी बातें लिखी और कही गयी हैं। भारत हमेशा से ही रचनाकारों का
घर रहा है। यहां के लेखक, कलाकार, कवि, मूर्तिकार, गीतकार आदि लोगों ने ही
तो यहां की संस्कृति और इतिहास को आज तक अपनी रचनाओं के जरिए जीवित रखा है।
हिंदी साहित्य की बात की जाए तो हमारे जेहन में अनगिनत लेखकों के नाम आते
है। वैसे ही हिंदी कविता भी हिंदी साहित्य की वो विधा है, जो खूबसूरत से
खूबसूरत विचार को कम से कम शब्दों में कहना जानती है। हिंदी साहित्य
में कविता लिखने वाले अनगिनत सितारे रहे हैं जिनकी कलम ने हर दौर में
हिंदी को एक से बढ़कर एक बेहतरीन रचनाएं दी। जिनमे कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं -
1. सूरदास
सूरदास का जन्म 1483 ई० में रुनकता नामक गाँव में हुआ। यह गाँव मथुरा-आगरा मार्ग के किनारे स्थित है। कुछ विद्वानों का मत है कि सूर का जन्म सीही नामक ग्राम में एक निर्धन सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वह बहुत विद्वान थे, उनकी लोग आज भी चर्चा करते है। मथुरा के बीच गऊघाट पर आकर रहने लगे थे। सूरदास के पिता, रामदास गायक थे। सूरदास के जन्मांध होने के विषय में मतभेद है। प्रारंभ में सूरदास आगरा के समीप गऊघाट पर रहते थे। वहीं उनकी भेंट श्री वललभाचार्य से हुई और वे उनके शिष्य बन गए। वल्लभाचार्य ने उनको पुष्टिमार्ग में
दीक्षित कर के कृष्णलीला के पद गाने का आदेश दिया। सूरदास की मृत्यु
गोवर्धन के निकट पारसौली ग्राम में 1584 ईस्वी में हुई।
रचनाएँ -
- साहित्य लहरी, सूरसागर, सूर की सारावली।
- श्रीकृष्ण जी की बाल-छवि पर लेखनी अनुपम चली।।
सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य लहरी, नल-दमयन्ती, ब्याहलो के अतिरिक्त
दशमस्कंध टीका, नागलीला, भागवत्, गोवर्धन लीला, सूरपचीसी, सूरसागर सार,
प्राणप्यारी, आदि ग्रन्थ सम्मिलित हैं। इनमें प्रारम्भ के तीन ग्रंथ ही
महत्त्वपूर्ण समझे जाते हैं।
अबदुर्ररहीम खानखाना का जन्म संवत् 1613 ( (ई. सन् 1556 ) में लाहौर में हुआ थे। रहीम के पिता बैरम खाँ तेरह वर्षीय अकबर के शिक्षक तथा अभिभावक थे। बैरम
खाँ खान-ए-खाना की उपाधि से सम्मानित थे। वे हुमायूँ के साढ़ू और अंतरंग
मित्र थे। रहीम की माँ वर्तमान हरियाणा प्रांत के मेवाती राजपूत जमाल खाँ की सुंदर एवं गुणवती कन्या सुल्ताना बेगम थी। रहीम, एक मध्यकालीन कवि, सेनापति, प्रशासक, आश्रयदाता, दानवीर, कूटनीतिज्ञ, बहुभाषाविद, कलाप्रेमी, एवं विद्वान थे। जन्म से एक मुसलमान होते हुए भी हिंदू जीवन के अंतर्मन में बैठकर रहीम ने जो मार्मिक तथ्य
अंकित किये थे, उनकी विशाल हृदयता का परिचय देती हैं। हिंदू देवी-देवताओं,
पर्वों, धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं का जहाँ भी आपके द्वारा उल्लेख किया
गया है।
रचनाएँ -
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चंदन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग।।
रहीम दोहावली, बरवै, नायिका भेद, मदनाष्टक, रास पंचाध्यायी, नगर शोभा, श्रृंगार सोरठा।
3. मैथिलीशरण गुप्त
हिंदी सहित्य के इतिहास में वे खड़ी बोली के प्रथम महत्त्वपूर्ण कवि हैं। उन्हें साहित्य जगत में 'दद्दा' नाम से सम्बोधित किया जाता था। मैथिलीशरण गुप्त का जन्म 3अगस्त 1886 में पिता सेठ रामचरण कनकने और माता काशी बाई की तीसरी संतान के रूप में उत्तर प्रदेश में झाँसी के पास चिरगांव में हुआ। उनकी कृति भारत-भारती (1912) भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के समय में काफी प्रभावशाली सिद्ध हुई थी और और इसी कारण महात्मा गांधी ने उन्हें 'राष्ट्रकवि' की पदवी भी दी थी। उनका काव्य एक ओर वैष्णव भावना से परिपोषित था, तो साथ ही जागरण व सुधार युग की राष्ट्रीय नैतिक चेतना से अनुप्राणित भी था।
रचनाएँ -
- खण्डकाव्य-
जयद्रथ वध, भारत-भारती, पंचवटी, द्वापर, सिद्धराज, नहुष, अंजलि और अर्घ्य,
अजित, अर्जन और विसर्जन, काबा और कर्बला, किसान, कुणाल गीत, गुरु तेग
बहादुर, गुरुकुल , जय भारत, युद्ध, झंकार , पृथ्वीपुत्र, वक संहार, शकुंतला, विश्व वेदना, राजा प्रजा, विष्णुप्रिया, उर्मिला, लीला, प्रदक्षिणा, दिवोदास , भूमि-भाग
- नाटक - रंग में भंग , राजा-प्रजा, वन वैभव , विकट भट , विरहिणी , वैतालिक, शक्ति, सैरन्ध्री, स्वदेश संगीत, हिड़िम्बा , हिन्दू, चंद्रहास।
4. सुमित्रानंदन पंत -
सुमित्रानंदन पंत हिंदी सहित्य में छायावाद युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। इस युग को जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और राजकुमार वर्मा जैसे कवियों का युग कहा जाता है। उनका जन्म 20 मई 1900 ई॰ को कौसानी बागेश्वर में हुआ था। जन्म के छह घंटे बाद ही उनकी माँ का निधन हो गया। उनका लालन-पालन उनकी दादी ने किया। हिंदी साहित्य सेवा के लिए उन्हें पद्मभूषण(1961), ज्ञानपीठ(1968), साहित्य अकादमी तथा सोवियत लैंड नेहरू पुरुस्कार जैसे उच्च श्रेणी के सम्मानों से अलंकृत किया गया। सुमित्रानंदन पंत के
नाम पर कौसानी में उनके पुराने घर को, जिसमें वह बचपन में रहा करते थे,
'सुमित्रानंदन पंत वीथिका' के नाम से एक संग्रहालय के रूप में परिवर्तित कर
दिया गया है।
रचनाएँ -
युगवाणी (1938),वीणा, (1919),लोकायतन, (1964),पल्लव (1926),ग्रंथी (1920),गुंजन (1932),ग्राम्या, (1940),युगांत (1937)
कहानियाँ - पाँच कहानियाँ (1938)
उपन्यास - हार (1960)
5. कबीर दास

कबीर या भगत कबीर 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। वे हिंदी साहित्य के भक्तिकालीन युग में ज्ञानाश्रयी-निर्गुण शाखा की काव्यधारा के प्रवर्तक थे| कबीर के (लगभग 14वीं-15वीं शताब्दी) जन्म स्थान के बारे में विद्वानों में मतभेद है परन्तु अधिकतर विद्वान इनका जन्म काशी में ही मानते हैं, जिसकी पुष्टि स्वयं कबीर का यह कथन भी करता है। "काशी में परगट भये ,रामानंद चेताये "
रचनाएँ -
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
- साखी: संस्कृत ' साक्षी , शब्द का विकृत रूप है और धर्मोपदेश के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। अधिकांश साखियां दोहों में लिखी गयी हैं पर उसमें सोरठे का भी प्रयोग मिलता है। कबीर की शिक्षाओं और सिद्धांतों का निरूपण अधिकतर साखी में हुआ है।
- सबद गेय पद है जिसमें पूरी तरह संगीतात्मकता विद्यमान है। इनमें उपदेशात्मकता के स्थान पर भावावेश की प्रधानता है ; क्योंकि इनमें कबीर के प्रेम और अंतरंग साधना की अभिव्यक्ति हुई है।
- रमैनी चौपाई छंद में लिखी गयी है इनमें कबीर के रहस्यवादी और दार्शनिक विचारों को प्रकट किया गया है।
6. महादेवी वर्मा
महादेवी वर्मा हिंदी की सर्वाधिक प्रतिभावान कवयित्रियों में से हैं। वे हिंदी साहित्य के छायावाद युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक मानी जाती हैं। महादेवी का जन्म 26 मार्च 1907 में फरुखाबाद, भारत में हुआ। उनके परिवार में लगभग २०० वर्षों या सात पीढ़ियों के बाद पहली बार पुत्री का जन्म हुआ था। अतः बाबा बाबू बाँके विहारी जी हर्ष से झूम उठे और इन्हें घर की देवी — महादेवी मानते हुए पुत्री का नाम महादेवी रखा। उनके पिता श्री गोविंद प्रसाद वर्मा भागलपुर के एक कॉलेज में प्राध्यापक थे। उनकी माता का नाम हेमरानी देवी था। सन् 1916 में उनके बाबा श्री बाँके विहारी ने इनका विवाह बरेली के पास नबाव गंज कस्बे के निवासी श्री स्वरूप नारायण वर्मा से कर दिया, जो उस समय दसवीं कक्षा के विद्यार्थी थे। आधुनिक हिन्दी की सबसे सशक्त कवयित्रियों में से एक होने के कारण उन्हें आधुनिक मीरा के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने कड़ी बोली हिन्दी की कविता में उस कोमल शब्दावली का विकास किया जो अभी तक केवल ब्रजभाषा में ही संभव मानी जाती थी।
रचनाएँ -
कविता संग्रह-
नीहार (1929), रश्मि (1932), नीरजा (1933), सांध्यगीत (1935), दीपशिखा (1942), प्रथम आयाम (1980), अग्निरेखा (1988), सप्तपर्णा (1959)
महादेवी वर्मा का गद्य साहित्य
रेखाचित्र: अतीत के चलचित्र (1941) और स्मृति की रेखाएं ( 1943),
संस्मरण: पथ के साथी (1956) और मेरा परिवार (1972) और संस्मरण ( 1983)
चुने हुए भाषणों का संकलन: संभाषण (1974 )
निबंध: शृंखला की कड़ियाँ (1942 ), विवेचनात्मक गद्य (1942), साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबंध (1962), संकल्पिता ( 1969)
ललित निबंध: क्षणदा (1956)
कहानियाँ: गिल्लू
संस्मरण, रेखाचित्र और निबंधों का संग्रह: हिमालय ( 1963)
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